मिट्टी न पानी, लखनऊ की हवा में खिल रहा केसर, गोमतीनगर के मकान में फर्स्‍ट फ्लोर पर हो रही खेती, जानिए कैसे

सैयद सना, लखनऊ: कश्मीर में उगने वाला केसर अब लखनऊ में खिलने लगा है, वह भी बिना मिट्टी और पानी के। गोमतीनगर के विजयंत खंड निवासी हेमंत श्रीवास्तव ने एरोपोनिक विधि से इसकी खेती शुरू की है। इसमें मिट्टी और पानी के बिना सिर्फ हवा में केसर के धागों क

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सैयद सना, लखनऊ: कश्मीर में उगने वाला केसर अब लखनऊ में खिलने लगा है, वह भी बिना मिट्टी और पानी के। गोमतीनगर के विजयंत खंड निवासी हेमंत श्रीवास्तव ने एरोपोनिक विधि से इसकी खेती शुरू की है। इसमें मिट्टी और पानी के बिना सिर्फ हवा में केसर के धागों का रंग गाढ़ा हो रहा है। इस विधि से 13-17 डिग्री तापमान बरकरार रखते हुए सिर्फ नमी के जरिए खेती होती है।
हेमंत ने अपने घर में 300 वर्ग फुट में सेटअप तैयार कर केसर के 10 टन बीज लगाए हैं। इससे पहले वह अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में एमबीए के बाद वहीं नौकरी कर रहे थे। उनकी पत्नी भी अमेरिका में जॉब कर रही थीं। बहन भी शादी के बाद से अमेरिका में रह रही है। हेमंत बताते हैं कि उनके पिता डीके श्रीवास्तव साल 2016 में रिटायर होने के बाद लखनऊ में सेटल हो गए थे।

मां-पिता अकेले न रहें, इसके लिए हेमंत अपनी प्रियंका के साथ साल 2023 में लखनऊ लौट आए। पिता को खेती बहुत पसंद है। ऐसे में थोड़ी रिसर्च की और केसर उगाने का फैसला किया। इसमें पिता के साथ मां विभावरी श्रीवास्तव ने भी पूरा सहयोग किया।

35 लाख में सेटअप बनाया

हेमंत ने बताया कि घर की पहली मंजिल पर 300 वर्ग फुट जगह खाली थी। इसी जगह पर सेटअप लगवाया। कमरे में दो चिलर, ह्युमिडिफायर, एलईडी और फोटोसिंथेसिस लाइटें लगाई गई। फिर दिल्ली से ट्रे मंगवाई और रैक बनवाई।

केसर की खेती में इसकी जड़ वाले बीज इस्तेमाल होते हैं, जिन्हें बल्ब कहते हैं। ये बल्ब कश्मीर और बाहर से मंगवाए। इसमें 30 से 35 लाख रुपये खर्च आया। लैब तैयार होने के बाद इसी साल सितंबर में बीज लगाए। इसमें डेढ़ महीने में फूल आ गए। उम्मीद है कि पहली फसल के तौर पर एक किलो केसर निकलेगा।

तापमान का रखना पड़ता है ध्यान

हेमंत बताते हैं कि केसर उगाने के लिए 13-17 डिग्री के बीच तापमान होना चाहिए। केसर उगाने का समय अगस्त से नवंबर तक है। अगस्त में बीज लगाने के बाद दो महीने लाइट नहीं जलाते। इस दौरान बल्ब बड़े होते हैं, फिर कली आना शुरू होती है। कली आने के बाद लाइट जलाई जाती है, ताकि फूल खिल सकें। एक फूल में केसर के तीन धागे होते हैं। इस विधि में खेती के लिए मिट्टी और पानी की जरूरत नहीं होती है, लेकिन मिस्ट के जरिए नमी मिलती रहती है।

क्वॉलिटी की करवाएंगे जांच

हेमंत ने बताया कि केसर के दाम इसकी क्वॉलिटी से तय होते हैं। प्रीमियम क्वालिटी का 500 रुपये प्रति ग्राम से महंगा बिकता है। ऐसे में केसर निकालने के बाद इसे कश्मीर की लैब भेजकर क्वॉलिटी की जांच करवाएंगे। हमने खेती के लिए बेहतरीन क्वॉलिटी के बल्ब इस्तेमाल किए हैं। ऐसे में उम्मीद है कि हम 600 से 700 रुपये प्रति ग्राम के रेट में केसर बेच सकेंगे।

तीन साल में लागत निकलने की उम्मीद

हेमंत ने बताया कि केसर की खेती से दो से तीन साल में पूरी लागत निकालने का टारगेट बनाया है। हमने केसर के जो बल्ब मंगवाए हैं, उनमें 6 ग्राम और इससे बड़े बल्ब का इस्तेमाल खेती के लिए करते हैं। छोटे बल्ब को मिट्टी, बालू और वर्मी कंपोस्ट मिलाकर बड़ा कर रहे हैं।

आम के आम गुठलियों के दाम

केसर निकलने के बाद बचे बल्ब को भी इसी तरह बड़ा करेंगे। अगर दस टन बल्ब से बीस टन बना लेंगे तो दस टन से खेती होगी और बाकी बेचने से 10 लाख रुपये मिलेंगे। इसके साथ केसर निकलने के बाद बचे फूल का इस्तेमाल परफ्यूम बनाने में भी होता है। इसकी बिक्री से भी आय होगी।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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